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त्वं विश्वे॑षां वरुणासि॒ राजा॒ ये च॑ दे॒वा अ॑सुर॒ ये च॒ मर्ताः॑। श॒तं नो॑ रास्व श॒रदो॑ वि॒चक्षे॒ऽश्यामायूं॑षि॒ सुधि॑तानि॒ पूर्वा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ viśveṣāṁ varuṇāsi rājā ye ca devā asura ye ca martāḥ | śataṁ no rāsva śarado vicakṣe śyāmāyūṁṣi sudhitāni pūrvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। विश्वे॑षाम्। व॒रु॒ण॒। अ॒सि॒। राजा॑। ये। च॒। दे॒वाः। अ॒सु॒र॒। ये। च॒। मर्ताः॑। श॒तम्। नः॒। रा॒स्व॒। श॒रदः॑। वि॒ऽचक्षे॑। अ॒श्याम॑। आयूं॑षि। सुधि॑तानि। पूर्वा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:27» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्य कैसे दीर्घ आयुवाले हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वरुण) अतिश्रेष्ठ (असुर) मद्यपान से सर्वथा रहित विद्वान् पुरुष जो (त्वम्) आप (विश्वेषाम्) सब मनुष्यादि जगत् के (राजा) राजा (असि) हो (च) और (ये) जो (देवाः) विद्वान् सभासद् (च) और (ये) जो (मर्त्ताः) साधारण मनुष्य हैं उनको हमारे (विचक्षे) विविध प्रकार के देखने को (शतम्) सौ (शरदः) वर्ष (नः) हमको (रास्व) दीजिये जिससे हम लोग (पूर्वा) पहिली (सुधितानि) सुन्दर प्रकार धारण की हुई अवस्थाओं को (अश्याम) भोगें प्राप्त हों ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पूर्ण ब्रह्मचर्य्य का सेवन करके अति विषयासक्ति को छोड़ देते हैं, वे सौ वर्ष से न्यून आयु को नहीं भोगते। इस ब्रह्मचर्य्यसेवन के विना मनुष्य कदापि दीर्घ अवस्थावाले नहीं हो सकते ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः कथं दीर्घायुषः स्युरित्याह।

अन्वय:

हे वरुणासुर यस्त्वं विश्वेषां राजाऽसि ये च देवाः ये च मर्त्ताः सन्ति तानस्माकं विचक्षे शतं शरदो नो रास्व यतो वयं पूर्वा सुधितान्यायूंष्यश्याम ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (विश्वेषाम्) सर्वेषां मनुष्यादीनाम् (वरुण) वरतम (असि) (राजा) (ये) (च) (देवाः) विद्वांसः सभासदः (असुर) अविद्यमाना सुरा मद्यपानं यस्य तत्सम्बुद्धौ (ये) (च) (मर्त्ताः) मनुष्याः (शतम्) (नः) अस्मान् (रास्व) राहि देहि। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् (शरदः) शरदृतवः (विचक्षे) विविधदर्शनाय (अश्याम) प्राप्नुयाम (आयूंषि) (सुधितानि) सुष्ठुधृतानि (पूर्वा) पूर्वाणि ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये पूर्णं ब्रह्मचर्यं कृत्वातिविषयासक्तिं त्यजन्ति ते शताद्वर्षेभ्यो न्यूनमायुर्न भुञ्जते नैतेन विना चिरायुषो मनुष्या भवितुमर्हन्ति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पूर्ण ब्रह्मचर्याचे सेवन करून अति विषयासक्ती सोडून देतात ती शंभर वर्षे जगतात. ब्रह्मचर्याचे पालन केल्याशिवाय माणसे कधीही दीर्घायुषी होऊ शकत नाहीत. ॥ १० ॥